एक देह एक आत्मा - 1 sangeeta sethi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक देह एक आत्मा - 1

कहानी

फेस बुक

“ सीमा ! जरा नाश्ता जल्दी लगा दो । आज ऑफिस जल्दी जाना है ”

निशांत ने बाथरूम से निकलते हुए कहा ।

“ अरे आज इतनी जल्दी नहा आए ” सीमा कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर जल्दी-जल्दी उँगलियाँ चलाने लगी । उसने सोचा था कि जब तक निशांत नहा कर आएंगे तब तक वो अपने फेसबुक अकाउण्ट को खोलकर देख लेगी कि विदेश में रह रहे उसके बेटे मौलिक ने रात में कुछ अपडेट किया है । दरअसल रात को उसने अपनी एक फोटो भी अपलोड की थी । शायद उस पर ही कोई कमेण्ट किया हो ।

“ तुम भी ना सीमा ! ये सुबह-सुबह कम्प्यूटर लेकर बैठ गई । ” निशांत शर्ट के बटन बन्द करते हुए बोले ।

“ बीबी जी तो रोज़ ही मौलिक बाबा से इस कम्प्यूटर पर ही बातें करती हैं साब जी ! मुझे भी सुनाती हैं ” लीला बाई झाड़ू लगाते हुए खनकती आवाज़ में बोल पड़ी ।

सीमा ने मुस्कुराते हुए फेसबुक के अपडेट देखे और बिना कोई कमेण्ट टाइप किए लॉगआउट करके कम्प्यूटर शट-डाउन कर दिया । अब वो हाइटेक सीमा किचन में थी । उसके हाथ फटाफट परांठा बेलने में व्यस्त थे । उसने एक तरफ निशांत के लिए चाय रखी और दूसरी तरफ परांठा सेका और डायनिंग टेबल पर रख दिया । अमूमन वो निशांत के साथ ही अपना नाश्ता निपटा देती है पर आज निशांत को जल्दी जो जाना था । वो तो बाद में भी कर लेगी ।

निशांत बड़े-बड़े निवाले निगल रहे थे और सीमा फेसबुक के अपडेट सुनाए जा रही थी ।

“ मौलिक कल कैलिफोर्निया गया था ......बड़ी अच्छी फोटो आई है सी-बीच की....मैंने भी अपनी वो फोटो भेजी है जो दीदी के घर खींची थी....मौलिक ने कमेण्ट लिखा है....गार्जियस मॉम डैड ” सीमा लगातार बोल रही थी और निशांत हाँ-हूँ करके बात खत्म कर रहे थे ।

जब मौलिक विदेश गया हैं तो उसी ने सीमा को फेसबुक ज्वाइन करने के लिए जोर दिया था । मौलिक के इंजीनीयरिंग में दाखिला लेते ही सीमा कम्प्यूटर के कुछ गुर तो सीख ही गई थी । लेखिका स्वभाव और कलाओं में दखल देने वाली सीमा के लिए कम्प्यूटर वरदान साबित हुआ । उसकी पेंटिग में और निखार आता गया । जब मौलिक कॉलेज होता और निशांत ऑफिस तो सीमा कम्प्यूटर पर पेंटिंग और अन्य कलाओं की साइट्स खंगालती ही नज़र आती । पिछले चार सालों में उसने अपना ई.मेल आइ डी भी बना लिया था । धीरे-धीरे इंटरनेट की बारीकियाँ सीखते-सीखते अपना ब्लॉग भी बना लिया था । वो जब तब ब्लॉग के ले-आउट के लिए मौलिक से सलाह-मशविरा करती । चार साल कब बीते पता ही नहीं चला । मौलिक की इंजिनीयरिंग की डिग्री भी पूरी हो चुकी थी । अब वो जी.आर.ई. की तैयारी में जुटा था । परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ तो स्टैण्डफोर्ड युनिवर्सिटी में उसे एम.एस. में दाखिला मिल गया था । सीमा उसके साथ जाने की तैयारी करवा रही थी । रोज़मर्रा की चीज़ों की खरीददारी भी करने दोनों बाज़ार जाते । एक तरफ मौलिक को विदेश जाने का उत्साह था तो दूसरी तरफ अपने मम्मी-पापा से बिछड़ने का दुख भी । जैसे –जैसे दिन नज़दीक आ रहे थे सीमा उदास होती जा रही थी । एक दिन बाज़ार से लौटते हुए मौलिक ने मॉम से कहा “ व्हाइ डोंट यू ज्वाइन फेसबुक मॉम ? इससे तुम मुझसे जुड़ी भी रहोगी और मेरे अपडेटस भी देख सकोगी ” आज मैं घर जाकर आपका फेसबुक अकाउण्ट बनाता हूँ । सीमा की उदासी का एक कतरा कम हुआ था । विदेश जाने से पहले मौलिक अपनी मॉम सीमा को ये फेसबुक का वरदान ही दे गया था ।

निशांत को तो फुरसत ही नहीं थी अपने ऑफिस से । पर सीमा के लिए फुरसत न होने का यह खूबसूरत कारण था । सीमा के शिड्यूल में साइटस, ई.मेल और ब्लॉग के साथ अब फेसबुक की सर्फिंग भी शामिल हो गई थी । उसने अपने फ्रेण्डस में कुछ लेखक, कुछ पेण्टर, कुछ संगीतज्ञ और कुछ समाज सेवी लोगों को फ्रेण्ड रिक़्वेस्ट भेजी थी । उन सबकी कनफर्मेशन भी आ गई थी । इंटरनेट अब सीमा का प्रिय शगल बन गया था । की-बोर्ड दबाते-दबाते अब वो इटरनेट के कईं गुर सीख गई थी ।

इस सोशल साइट को वो मन ही मन बहुत धन्यवाद देती थी जो उसे बन्द कमरे में बैठे ही उसे ढेर सारे दोस्तों से मिलवा रही थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि विदेश में दूर बैठे उसके इकलौते बेटे मौलिक से उसकी दूरियाँ कम कर रही थी ।

एक दिन मौलिक के फेसबुक पर अपडेट को वो कमरे में पौंछा लगाती लीलाबाई को सुना रही थी ।

“ देखो लीलाबाई ! मौलिक का कॉलेज देखो ! कैसा खूबसूरत है ”

लीलाबाई पौंछा छोड़कर कम्प्यूटर के पास आकर खड़ी हो गई ।

“ अरे बीबी जी ! देखो मौलिक बाबा तो गोरे भी हो गए हैं ” सीमा जोर से हँस पड़ी ।

“ बीबी जी ! मेरा भी श्याम आज इतनाईच बड़ा ही होता । पता नहीं उसे धरती खा गई या आसमान निगल गया । ” उसके पौंछे की रगड़ ढीली हो गई थी ।

“ क्या हुआ उसे ?” सीमा के माउस पर रखी उंगली का क्लिक रुक गया था ।

“ 5 बरस का था ...बस्ती से ना जाने कहाँ गुम हो गया ....मैं तो घर में ही थी....पण वो खेलने गया तो आज तक ही नहीं लौटा ! उसके साथ खेलते बच्चे बताते कि कोई आदमी आया था , वही ले गया शायद ” सीमा का कलेजा खिंच गया था । उसने जल्दी-जल्दी सारी विण्डोज़ बन्द की और कम्प्यूटर शट डाउन कर दिया ।

फेसबुक में जब-तब सर्चमोर का सन्देश आता रहता । एक दिन फेसबुक पर सन्देश था –“तुम वही हो ना सीमा दिवाकर ” सीमा हैरान थी । अकाउण्ट क्लिक किया तो घोर आश्चर्य कि आज से 27 साल पहले स्काउट गाइड कैम्प में सीमा की फ्रेण्ड बनी अर्नावाज़ थी । हाँ वही अर्नावाज़ ! जो पारसी थी और बम्बई से आई । हाँ वही बम्बई ! जो आज अपना नाम बदल कर मुम्बई बन बैठा है । मेरा उससे 10 साल तक पत्र-व्यवहार भी चला । उसकी भेजी हुई फ्रेण्ड रिक्वेस्ट को मैने कनफर्म कर दिया और उस एक क्लिक के साथ सीमा पुरानी यादों के घेरे में चली गई । वो ज़माना पेन-फ्रेण्डशिप का था । दिल्ली में आयोजित उस कैम्प में बनी अर्नावाज़ से कुछ क्षणों की मुलाकात उसे 10 साल तक पत्र लिख कर पूरी हुई । ना जाने कितने खत लिखे सीमा ने उसे और उसने सीमा को । उस जमाने की रुढिवादिता भी उनके आड़े नहीं आई । सीमा के पति और उसके पति तक भी उनकी दोस्ती की खुश्बू पहुँची । उनके खतों में अब अपने पति और बच्चों का भी ज़िक्र होने लगा । फोटो का भी आदान-प्रदान होने लगा । वो क्या किसी सोशल साइट से कम था । पर समय की तेज रफ्तार में कहीं उनका हाथ आपस छूट गया और दोस्ती का अकाउण्ट कहीं गुम हो गया ।

आज सीमा बहुत खुश थी । अर्नावाज़ का सन्देश उसकी फ्रेण्ड रिक्वेस्ट की कंफर्मेशन की एवज़ में फिर आया था । सारे गिले-शिकवे उसने इसी एक सन्देश में कर डाले थे। “ सीमा ! तुमने पत्र लिखना क्यों छोड़ दिया। तुम्हारा पता बदल गया है या शहर ही । कितने खत गुम हो गए । तुमने जवाब ही नहीं दिया । अब बताओ तुम कैसी हो । फोन पर बात करना । और उसने अपना मोबाइल न. दिया था ” सीमा खुशी से उछल पड़ी थी । वही अर्नावाज़ थी । हाइटेक जमाने के साथ वो भी हाइटेक हो गई थी । सीमा फोन के लिए उचित समय का इंतज़ार करने लगी । वो जल्द से जल्द निशांत को बताना चाहती थी । पर वो अब और इंतज़ार नहीं कर सकती थी । उसने निशांत के आने से पहले फोन कर डाला ।

बिल्कुल वही आवाज़. जो 27 बरस पहले थी पर हिन्दी बहुत साफ हो गई थी । शायद उसके दिल्ली में बस जाने का कमाल था । उससे बात करने के बाद तो सीमा बेसब्री से निशांत के आने का इंतज़ार करने लगी कि कब निशांत ऑफिस से आए और वो फेसबुक के कमाल की सारी दास्तां बताए । “ हाँ वही सहेली आज मुझे फेसबुक पर मिल गई है निशांत जिसकी खूबसूरत हैण्डराइटिंग में पते लिखे खत तुम मुझे लाकर देते थे । ” सीमा खुद से ही बातें करने लगी थी ।

लीलाबाई और निशांत साथ-साथ घुसे थे मेन-गेट से । लीला बाई ने तो किचन में बर्तनों के सिंक पर मोर्चा ले लिया और निशान्त पोर्च में गाड़ी पार्क करने के बाद वाश-बेसिन पर हाथ मुँह धोने चले गए । सीमा के लिए अब एक पल भी इंतज़ार करना भारी पड़ रहा था । वो निशांत के लिए टॉवल लेकर वाश-बेसिन पर ही चली गई ।

“ आज ये तकल्लुफ क्यों ” निशांत ने हैरानी से पूछा ।

“आज मुझे फेसबुक पर मेरी बरसों से बिछड़ी पुरानी सहेली जो मिल गई है...अरे वही अर्नावाज़...वही बड़े-बड़े अक्षरों में मुझे खत लिखने वाली...अरे आप ही तो लाते थे उसके पत्र अपने ऑफिस से ...आपके ऑफिस के पते पर ही तो आती थी डाक....अरे वही पारसी लड़की....” सीमा खुशी के अतिरेक में निशांत की हाँ-हूँ को भी जगह नहीं दे रही थी और खुशी के मारे निशांत से लिपट ही गई ।

“ हटो ! हटो !...मुँह गीला है ” निशांत छूटने का उपक्रम करते हुए कुनमुनाए ।

सीमा फेसबुक के फायदे गिनाने लगी । “ देखो निशांत ! फेसबुक के सर्च पर नाम टाइप करो और ढूँढ डालो अपनी फ्रेण्ड को । और फिर करो फि खूब बातें....”

“ रहने दो ! रहने दो ! ये तो गनीमत है कि तुम्हारी वो सहेली उसी प्रोफाइल में रही है जिसमें तुम हो वरना कहाँ मिलती । अगर वो तुम्हारी तरह कम्प्यूटर चलाना नहीं जानती तो कैसे फेसबुक पर आती ”

“ कम ऑन निशांत ! कैसी बात कर रहे हो ! कम्प्यूटर तो आजकल आम बात है ” सीमा ने निशांत की बात से असहमति जताते हुए कन्धे पर हाथ रख दिया ।

“ अपनी अल्का को ही लो ना ! क्या कम पढी लिखी है । हमने भी उसे कॉन्वेण्ट में ही पढाया था । पर वो बिज़नेस क्लास फैमिली में ऐसी उलझी कि कम्प्यूटर तो दूर की बात उसे घर के कामों से ही फुर्सत नहीं ” निशांत अपनी लाडली बहन को लेकर यथार्थ जीवन की कड़वी सच्चाई को उगल रहे थे ।

“ ओफ्फो ! यथार्थवादी निशांत चन्द्र ! अब सुनो भी मैने अर्नावाज़ से क्या बात की !”

“ हाँ-हाँ ! सीमा जी गनीमत है तुम्हारी सखी और तुम एक जैसी हो ” निशांत ने हल्के मूड में बदलते हुए कहा !

“ सोचो निशांत ! जिसके बारे में मैंने सोचना भी छोड़ दिया था वो कम्प्यूटर पर इतनी विस्तृत जानकारी के साथ मिली । इतने ढेर सारे फोटो , उसकी बेटी के और उसके पति के भी ”

“ हाँ ! हाँ चाय पेश करेंगी आप ?” निशांत ने चुटकी लेते हुए कहा ।

सीमा किचन में घुसी तो लीलाबाई ने बर्तनों की खटर-पटर धीमी कर दी थी । सीमा ने लाइटर से गैस जलाई और चाय का भगोना रखने को ही थी कि लीलाबाई बोली-“ बीबी जी ! एक काम कहूँ ! आप फेसबुक पर मेरे श्याम को ढूँढ दोगे ! कौन जाने उसे कोई ऐसा आदमी ले गया हो जिसके घर कम्प्यूटर हो । ”

सीमा ने चौंक कर पीछे देखा । लीलाबाई की आँखों में नमी थी और आशा की चमक भी ।

सीमा के हाथ में चाय का भगोना था । उसे गैस की नीली लौ में फेसबुक का आइकन “एफ” दिख रहा था ।

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